Saturday, September 22, 2012

Direct from Revered Gurudev - 4

हमे अपनी शक्ति का उपयोग दूसरों को कष्ट देने और नीचा दिखाने में नही करना चाहिए | हमे अपनी शक्ति का उपयोग वृक्ष की तरह खुद की उन्नति में करना चाहिए |

जो फलदार वृक्ष होता है वह सबसे पहले झुकता है | जी सूखी लकड़ी होती है वह ठूंठ की तरह खड़ी रहती है | शिष्य का गुरु के आगे झुकना इस बात का प्रमाण है कि उसमे प्रेम है ,श्रद्धा है ,समर्पण है |

आलस्य ,द्वेष ,क्रोध ,असत्य भाषण ये शिष्य को समाप्त कर देते है | इनसे बचना और इन पर विजय प्राप्त करना हर शिष्य का धर्म और कर्तव्य है |

एक शिष्य को चाहिए वह अपने ह्रदय को , मन को इतना शुद्ध और दिव्य बना दे जिससे गुरु उसमे स्थापित हो सकें | इतना चैतन्य बना दे कि बाहर की दूषित हवाएं उस पर असर नही कर पाएं | उस पर जीवन के विकारों का कोई प्रभाव न हो |

यह आवश्यक नही कि आप मिठाई लेकर के और फूलो का हार ले कर के गुरु से मिले | गुरु से मिले तो आपकी आँखों में प्रेम के अश्रु हो , ह्रदय गदगद हो , कंठ अवरुद्ध हो और आपका मन गुरु चरणों में समर्पित हो |

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