Saturday, September 22, 2012

Direct from Revered Gurudev - 2

गुरु से ही समझा जा सकता है की वास्तविक आनंद क्या है और यह तुम तब समझ सकते हो जब तुम अपने आप को पूरी तरह गुरु में समाहित कर दो और गुरु को पूर्ण रूप से अपने आप में समाहित कर दो |


जिस क्षण गुरु पूर्णता से आप में समाहित हो गए उस क्षण आप को पूर्ण ज्ञान स्वयं प्राप्त हो जाएगा | उसके लिए फिर पोथिया पढने की आवशयकता नही रह जायेगी |

गुरु को केवल ह्रदय में स्थापित किया जा सकता है या आज्ञा चक्र पर स्थापित किया जा सकता है ,परन्तु इससे पहले आवश्यक है तुम स्वार्थ ,चल ,झूठ ,कपट से मुक्त हो जाओ | ये जब तक तुम्हारे अन्दर है गुरु स्थापित नहीं हो सकता गुरु से कुछ प्राप्त करने के क्रिया प्रेम और समर्पण के माध्यम से प्राप्त हो सकती है , उसके लिए कोई भौतिकता का रास्ता नही है |

गुरु को न तुम्हारा धन चाहिए न तुम्हारा ऐश्वर्य | उसे तो केवल पूर्ण समर्पण चाहिए |

गुरु जो रास्ता बताए उस पर बढ़ना बहुत कठिन कार्य है | केवल हिम्मतवान व्यक्ति ही उस पर बढ़ सकता है | गया बीता व्यक्ति पूर्ण समर्पण नहीं कर सकता | समर्पण के लिए व्यक्ति को वीर होना पडेगा , महावीर होना पडेगा |

जीवन में यह महतवपूर्ण नहीं की आपने कितना कमाया या कितना झूठ बोला या कितनी चोरी की | महत्वपूर्ण यह है की आप गुरु के बताये रास्ते पर कितना चले , कितना गुरु कार्य किया , तुमने अँधेरे में कितने दीपक जलाए |

मैं तुम्हारा हाथ पकड़ने को तैयार हूँ , यह मेरे जिम्मेवारी है की मैं तुम्हे सही रास्ते पर पकड़कर अग्रसर करूं | मैं ऐसा करूंगा ही ,यह मेरा धर्म है और मेरे बताए रास्ते पर चलकर ही आप पूर्णता तक पहुँच पायेंगे , अद्वितीय बन पायेंगे |

केवल चरण स्पर्श करके फूलो का हार पहनाने से कुछ नहीं होगा | गुरु जिस मार्ग पर ले जाकर आपको खड़ा करें उसपर आप अग्रसर हो वही जीवन की श्रेष्ठता है , उच्चता है |

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