Monday, May 28, 2012

Maheshwar Siddhi Sadhana Shivir - Delhi

Date: 28, 29, 30 May 2012

Venue: Kailash Siddhashram
             46, Kapil Vihar,
             Pitampura, New Delhi

Telephone:011-27351006



प्रत्येक साधना नि:शुल्क
कैलाश सिद्धाश्रम

 सदगुरुदेव सच्चिदानन्द महाराज, प्रभु निखिलेश्वरानन्दजी के आशीर्वाद से गुरुदेव कैलाश श्रीमाली जी  आश्रम कैलाश सिद्धाश्रम में प्रत्येक साधक शिष्य को निम्नाकिंत साधना प्रयोग निशुल्क सम्पन्न करायेंगे |
समस्त साधकों एवं शिष्यों के लिए यह योजना कार्तिक मास से प्रारम्भ कि गई है, इसके अंतर्गत विशेष दिवसों पर दिल्ली एवं जोधपुर में पूज्य गुरुदेव के निर्देशन में यह साधनाएं पूर्ण विधि-विधान से सम्पन्न होती हैं | यदि श्रधा व विश्वास हो, तो उसी दिन से साधनाओं में सिद्धि का अनुभव भी होने लगता है |

 सौभाग्य सावित्री दीक्षा
साधक का अर्थ ही यही है, कि उसके जीवन में पराजय जैसा कोई शब्द ही नहीं हो | पूर्ण रूप से अपराजित व्यक्ति वही कहा जा सकता है, जिसकी यदि हार हो तो वह गुरु के सामने हो और कहीं नहीं हो | और सावित्री और सत्यवान को यही वरदान प्राप्त था, कि ऊनकी पराजय हो ही नहीं सकती, उन्हें मारने वाला न तो कोई नर हो, न किन्नर, न गंधर्व, न राक्षस, न देवता | यमराज को भी पराजय का मुह देखना पड़ा | यही जीवन का सौभाग्य है | परन्तु आजीवन वह पूर्ण सम्मान के साथ जिया, हार संकल्प में विजयी हुआ, जो भी चाहा वह किया, हार जगह सफलता प्राप्त की | ऐसा हे हो सके, कि साधक को अपने प्रत्येक कार्य में सफलता मिले, विजय मिले चाहे वह शत्रु हो, चाहे वह कोई मुकदमा हो, चाहे वह कोई प्रतियोगी परीक्षा हो, चाहे वह कोई व्यापारिक अनुबंध हो, कोई लक्ष्य या संकल्प हो, सफलता मिले ही, विजय मिले ही | इसी का नाम है सौभाग्य सावित्री दीक्षा |

 देव तत्व जागरण दीक्षा
मन्त्र-तंत्र और यंत्रों के इस विशाल समुंद्र में अवगाहन करने का प्रयोजन सिद्धि होता है | यह सिद्धि किसी को शीघ्र तथा किसी को बहुत अधिक प्रयास के बाद मिल पाती है, और जिनको बहुत प्रयास के बाद भी नहीं मिलती वे साधनाओं को भ्रमजाल ही मान लेते हैं | परन्तु यह सत्य नहीं है, यदि किसी को मंजिल नहीं मिली तो इसका यह अर्थ नहीं है कि मंजिल है ही नहीं | हाँ यह अवश्य सत्य है कि मंजिल तक का रास्ता लंबा था और वहां तक पहुंचते-पहुँचते व्यक्ति निराश हो गया दैवीय कृपा अथवा ह्रदय भाव में देवत्व जागरण नहीं होने के कारण ऐसी स्थितियाँ आती हिनहिन | जो रास्ता मंजिल तक जाता हो, वह किसी कारण देव कृपा से बंद पड़ा हो | मनुष्य के मस्तिष्क तंतुओं में स्वंय के ही विकारों के फलतः कई ऐसी ग्रंथियां पड़ जाती हैं, जो साधनाओं में सिद्धि मार्ग को अवरुद्ध कर देती हैं | इस दीक्षा द्वारा देव तत्व कि चेतना रोम-रोम आप्लावित होती है | और साधक को शीघ्र ही सफलता अनुभूत होने लगती है |

Sunday, May 27, 2012

Vindhya Vasini Lakshmi Sadhana Shivir - Mumbai

Date: 27 May, 2012

Venue: Brahmin Seva Mandal, Bhawani Shankar Road, Near Kabutar Khana, Dadar (West), Mumbai, Maharashtra (at a distance of only 5 minutes from Dadar Station)

Organiser: Vrindavan Gupta 09819053360, Vandana Behan 773861333, R.S. Rathod 9224903539, Ravi Salve 9224415429, Santosh Ambedkar 9321339369, Neelam Behan 9930664579, Prarabhdh Manjrekar 9819178778, Sushila BEhan 9029039332, Sudhir Sethiya, Sunil Salve 9870629223, Ratnakar 8938657425, Chandrakant Mishra 9989660729, Naagsen Panwar 986721153, Jaiprakash Pal 9769827255, Bunty 98290568805, Natu Bhai 9320090040, Tulsi Mahto 9967163865, Hansraj 9769026451, Bapu Kamble 9619605053, Shailesh Joshi 9323775717, Suni Singh 9987550857, Buddhirama Pod 9819000414, Vasant Puriya 9869703251

Saturday, May 26, 2012

Guru Chaitainya Sadhana Shivir - Mumbai

Date:  26 May, 2012

Venue: B-401, Devdarshan, Adeshwar Park, Near Fortis / Wokhard Hospital, Kalyan Sheel Road, Kalyan (West), Mumbai (Maharashtra) (at a distance of only 10 minutes from Kalyan Station)

Organiser: Snehlata Behan 09321473730, Dinesh 9323139860, Anil Kumbhare 9819927898, Dr. Ravinder 9833514917, Tara 8767661887, Dr. Pathak 9423369984, Yogita Behan 9326116161, Abha Behan 7498426479, Vijesh 9764641638, Vilaas Patil 9967913877, Kajal Jagyaasi 9324535295, Roshan 9987560823, Vipul 9673211595, Amesh Lotleekar 9029768706, Vinod Nihlaani 9326032196, Bharat Bhoiar 9220710958, Dilip Ahuja 9004608536, Rajinder Binwani 9272733722, R.P. Maurya 9768277425, Uttam 9869517721, R.K. Sharma 9029771920, Sarvesh Nikhare 9967915995, Parveend Pathak 9720178460, Ravi Patil 9029768153, B.K. Pandey 9320880871, Rachna Srivastava

Tuesday, May 22, 2012

Triveni Trishakti Siddhashram Sadhana Shivir - Raipur

Date: 22, 23 May, 2012

Venue: Mahanadi Sondhoor, Pairi River Ghat, Rajim, Zila : Raipur (Chattisgarh)

Organiser: Rajim - Mahesh Kumar Sahoo 9009089688, Santosh Jain 9893471488, Gaindram Sahoo 9826684041, Pod - Jineshwar Sinha 9752506378, Gariyaband - G.R. Ghatge 9425525748, Panduka - Chandraram Sahoo 9993232121, Smt. Deve Pandey, Panrsooli - A.K. Bhatt 9754613678, Dr. Komal Chandra Sinha 9009201916, Dr. R.K. Rajput 9575884159, Guna Naam Dhruv 9713553192, Dilip Sahoo 7697651463, Choora - Shambu Tiwari 9993866256, Ranjan Pradhan, O.P. Dwivedi, Fingeshwar - Jageshwar Sahu, Mahasamundra - Bhagwati Sahu, Chuiya - Gajender Sinha, Rakshi - Jakeshwar Sinha, Tengana Basa - Ramesh Sinha, Dev Narain Sinha, Taridhar - Yugal Kishore Sahu, Bheesh Lal Sahoo, Beltukari - Bhim Sen Sahu, Nande Sahu, Chaman Lal Sahu, Mainpur - Arti Dhruv, Gauri Chauhan, Nayapara - Chandrakant Devangan, Kush Sahu, Raipur - Suresh Sahu, Sant Ram Sahu, Kamal  Verma, Devgaon - Santu Sahoo, Roopl Lal Sahoo, Chikhali - Ramesh Kumar Sahoo 9302270749, Kanker - Vishnu Jain 9424275057, Domar Sinha 7879417809, Ganesh Yadav, Hemant Yadav, Deenu Ram Jain, Sanjay Bastrakaar, Meera Taram, Gautam Thakur, Sandhya Thakur, Vidya Thakur, G.R. Jain, Keshkal - Shrawan Mandavi, Mukesh Bhavatre, Jhadu Ram Ravte, Bhagwan Ram Dhruv, Bhanupratapur - Kailash Sharma, Hebhuram Komre, Lakhanpuri - Kishan Sahoo, Ram Kumar Kashyap, Charma - Rajender Ojha, Nagari - Bharat Nirmalkar, Lalit Nirmalkar, Madan Sahu, Amrit Sahu, Pund Lik Kashyap, Madhuri Kashyap, Narhar Pur - Panchu Lal Mandavi, Shankar Shauri, Mahesh Mandavi, Johan Mandavi, Demaar - Sheet Sahu, Ashok Neenpal, I.R. Nishad, Raj Kumar Sahoo, Lakhan Sahoo, Raju Meen Pal, Dhamtari - Domesh Sinha, Rajkamal Sharma, Bhagwati Devaangan, Puroor - Kaushal Gajmalya, Jagadalpur - Radha Krishan Kushwaha, Peeteshwar Sahu, Venkatrao, Indra Kumar Umre, Saroj Devangan, Reeta Thakur, Preeti Wankhede, S.B. Singh, Dharmender Devaangan, Kartikram Koma, Kishan Dhruv, D.B. Nag, Yadunandan Yadav, Tenganabasa - Gosai Ram Sinha, Budaan Thakur, Heera Sinha, Bhatapara - Gajender Sahoo, Krishna Nand Nikhil, Keregaon - Tilak Soni 9406233551, Peeluram Dhruv, Ramesh Kumar, Lagnu Ram Dhruv, Magar Lod - Toran Sinha, Mayaram Sahoo, Amrit Lal Sinha, Dhalli, Rajhara - Tikeshwar Sonkar, Dhruv Kumar Sahoo, Suresh Rai, Vishrampuri - Prem Lal Sahoo, S.B. Majhi, Belaranalgaon - Radhe Devaangan, Narottam Sahoo, Indra Kumar Temre, Karan Das Manikpuri, Chandra Bhan Naagesh, Daantewada - Nirmala Karma, Lakshman Singh, Heerapur - Ramesh Kumar Nishad, Vijay Sagar, Dev Narayan Thakur, Hemant Sahu, Baalod - Dr. Koteshwar, Madhu Sudan, Jagjeevan Nishaad, Pradeep Sonwani, Maheshwar Yogi, Basu Nikhil, Badena - Manoj Sahu, Tarseenva - Heera Lal Sahoo, Khilawan Yadav, Dhamtari - Chandrashekhar Namdev, Anil Gupta, Gurg - Deduram Devaangan, K.R. Kulhada, Teekam Sahu, Saamani Sahoo, Sonia Gulati, Subhash Sahoo, Shailender Paarkar, Kirti Sahu, Farasgaon - Dhan Prasad Sahoo, Anita Sahoo, Vilaaspur - Jitender Kaushik, Shivanand Awasthi, Tarikanti, Nayanpara - Kumari Usha Sahoo, Chvaand - Maakhan Ganjeeer, Prakash Sahoo, Mainpur - Kheduram Netaam, Devari - Dev Lal Korarm, Hemant Dhaneliya, Takhanpur - Chabiram Kashyap, Jaanjeer - Radhey Shyam Sahoo, Champa - Girish Modi, Vijay Shukla, Narottam Sahu, Ajay Patel, Hanuman Aggarwal, Korba - D.R. Manhar, Bhola Shankar Kaivart, Raigarh - Boondram Patel, Subhadra Vaaraskar

Sunday, May 20, 2012

Guru Poornima Parv - 1,2,3 July 2012 - Amarkantak (Madhya Pradesh)

१,२ एवं ३ जुलाई अमरकंटक

गुरु पूर्णिमा तो गुरु-ऋण से उऋण होने का पर्व है

प्रिय आत्मीय मानस के राजहंसों !

आषाढ का पहला दिन ही इन्द्र धनुष के पथ पर गुरु का नाम अंकित कर देता है, और उन रंगों को शिष्य अपने मन में उत्तर कर मानस के मानसरोवर में गहरी डुबकी लगाता हुआ, अत्यंत प्रफुल्लता से अपने पंखों को अमृत में भिगोकर आह्लाद और प्रसन्नता के पंखों को फडफडाता हुआ नील गगन में उड़ कर इन्द्र धनुष के रंगों में खो जाने को ही जीवन कि पूर्णता जानता है

और शिष्य भी आषाढ के पहले दिन से ही गुरु पूर्णिमा कि प्रतीक्षा करता रहता है, क्योंकि यह सही अर्थोंमें शिष्य का अपना स्वंय का पर्व है, यह शिष्य के आत्मीय जीवन का लेखा-जोखा है, यह तुम्हारे प्राणों पर अंकित मेरे सन्देश का पर्व है, आनंद दायक क्षण है, क्योंकि इसी पर्व के लिए आषाढ कि छोटी – छोटी बूंदे श्रद्धा बन कर गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु रुपी समुन्द्र में एकाकार हो जाने के लिए प्रयत्नशील रहती हैं

यह पर्व सही अर्थों में गुरु का पर्व है ही नहीं, यह तो शिष्य पर्व है, इसे शिष्य पूर्णिमा कहा जाता है, क्योंकि यह शिष्य के जीवन का एक अन्तरंग और महत्वपूर्ण क्षण है, यह उसके लिए उत्सव का आयोजन है, यह मन कि प्रसन्नता को व्यक्त करने का त्यौहार है, यह एक ऐसा पर्व है जो जीवन कि प्रफुल्लता, मधुरता और समर्पण के पथ पर गुरु के चरण चिन्ह अंकित कर अपने आपको सौभाग्य शाली मानते हैं

यदि तुम मेरे आत्मीय हो, मेरे प्राणों के घनीभूत स्वरुप हो, मेरे जीवन का रस और चेतना हो तो यह निश्चय ही तुम्हारे लिए उत्सव, आनंद और सौभाग्य का पर्व है, क्योंकि शिष्य अपने जीवन कि पूर्णता तभी पा सकता है, जब वह गुरु-ऋण से उऋण हो जाये, माँ ने तो केवल तुम्हारी देह को जन्म दिया, पर मैंने उस देह को संस्कारित किया है, उसमें प्राणश्चेतना जाग्रत कि है, उस तेज तपती हुई धूप में वासन्ती बहार का झोंका प्रवाहित किया है, मैंने उस तपते हुए भूखण्ड पर आनन्द के अमिट अक्षर लिखने कि प्रक्रिया की है, और मैंने तुम्हें “पुत्र” शब्द से, “आत्मीय” शब्द से, “प्राण” शब्द से सम्बोधित किया है

मैंने तुम्हारे जीवन में वह प्रक्रिया संपन्न की है जो और कोई संपन्न नहीं कर सके हैं, मैंने तुम्हारे जीवन में वह चेतना दी है जो अन्य लोगों के बस की बात नहीं है, मैंने तुममें मधुरता, और साधना की गंगा प्रवाहित की है, जिसमें स्नान कर तुम समाज के इन मैले कुचैले लोगों से अलग और दैदीप्यमान नजर आने लगे हो, तुम्हारे चेहरों पर एक प्रभा मंडल बनने लगा है, तुम्हारी वाणी में एक तेज और क्षमता आने लगी है, तुम्हारे शब्दों में प्रभाव उत्पन्न होने लगा है

और यह गुरु के द्वारा संभव हो सका है, यह इस जीवन का ही नहीं, कई-कई जन्मों का लेखा-जोखा है, में तुम्हारे इस जन्म का साक्षीभूत गु ही नहीं हूँ, अपितु पिछले पच्चीस जन्मों का लेखा-जोखा, हिसाब-किताब मेरे पास है, और हर बार मैंने तुम्हें आवाज़ दी है, और तुमने अनसुनी कर दी है, हर बार तुम्हारे प्राणों की चौखट पर दस्तक दी है, और हर बार तुम किवाड़ बंद कर के बैठ गये हो, हर बार मैंने तुम्हें झकोरने का, जाग्रत करने का, चैतन्यता प्रदान करने का प्रयास किया है, और हर बार तुमने अपना मुह गृहस्थ और समाज की भुरभुरी रेत में छिपाकर अनदेखा अनसुना कर दिया है

पर यह कब तक चलेगा, कितने-कितने जन्मों तक तुम्हारी चुप्पी, तुम्हारी यह कायरता, तुम्हारी यह बुदजिली मुझे पीड़ा पहुंचाती रहेगी, कब तक में गला फाड़-फाड़ कर आवाजें देता रहूँगा और तुम अनसुनी करते रहोगे, कब तक में तुम्हारा हाथ पकड़ कर “ सिद्ध योगा “ झील के किनारे ले जाने का प्रयास करूँगा और तुम हाथ छुड़ाकर समाज की उस विषैली वायु में साँस लेने के लिए भाग खड़े होगे, ऐसा कब तक होगा, ऐसा कब तक चलेगा, इस प्रकार से कब तक गुरु को पीड़ा पहुंचाते रहोगे, कब तक उसके चित पर अपने तेज और नुकीले नाखूनों से घाव करते रहोगे, कब तक उसके प्राणों को वेदना देते रहोगे

मैंने तुम्हें अपना नाम दिया है, और इससे भी बढकर मैंने तुम्हें अपना पुत्र और आत्मीय कहा है, अपना गोत्र तुम्हें प्रदान किया है, और अपने जीवन के रस से सींच-सींच कर तुम्हारी बेल को मुरझाने से बचाने का प्रयास किया है, तुम्हारी सुखी हुई टहनियों में फिर नई कोपलें आवें, फिर वातावरण सौरभमय बने, मैंने जीवन के प्रत्येक क्षण को इसके लिए लगाया है, अपने जवानी को, हिमालय के पथरों पर घिस-घिस कर तुम्हें अमृत पिलाने का प्रयास किया है, तुम्हारे प्रत्येक जन्म में मैंने तुम्हारे मुरझाये हुए चेहरे पर एक खुशी, एक आह्लाद, एक चमक प्रदान करने का प्रयास किया है

पर यह सब कुछ यों ही नहीं हो गया, इसके लिए मुझे तुमसे भी ज्यादा परिश्रम करना पड़ा है, मैंने अपने शरीर की बाती बना कर तुम्हारे जीवन के अंधकार में रोशनी बिखेरने का प्रयत्न किया है, अपने प्राणों का दोहन कर उस अमृत जल से तुम्हारी बेल को सींचने का और हरी-भरी बनाये रखने का प्रयास किया है, तिल-तिल कर अपने आप को जलाते हुए भी, तुम्हारे चेहरे पर मुस्कराहट देने की कोशिश की है, और मेरा प्रत्येक क्षण, जीवन का प्रत्येक चिंतन इस कार्य के लिए समर्पित हुआ है, जिससे कि मेरे मानस के राजहंस अपनी जाति को पहिचान सकें, अपने स्वरुप से परिचित हो सकें, अपने गोत्र से अभिभूत हो सकें, और मेरे ह्रदय के इस मान सरोवर में गहराई के साथ डुबकी लगा कर लौटते समय मोती ला सकें

और यह हर बार हुआ है, और यह पिछले कई जन्मों से होता रहा है, क्योंकि मैंने हर क्षण तुम्हारे लिए ही प्रयत्न किया है, मेरा जीवन अपने स्वंय के लिए या परिवार के लिए नहीं है, मेरा जीवन तो शिष्यों के लिए है, मेरे जीवन का उद्देश्य तो शिष्यों को पूर्णता देने का प्रयास है, और इसके लिए मैंने सिद्धाश्रम जैसा आनन्ददायक और अनिवर्चनीय आश्रम छोड़ा, और तुम्हारे इस मैले कुचैले, गलियारों में आकार बैठा, जो वायुवेग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए सक्षम था, उसने तुम्हारे लिए अपने आप को एक छोटे से वाहन में बन्द कर लिया, जिसका घर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड था, और किसी भी ग्रह या लोक में विचरण करता हुआ निरंतर आनन्दयुक्त था, उसने तुम्हारे लिए अपने आप को एक छोटे से घर में आबद्ध कर लिया, तुम्हारे लिए समाज से जूंझा, आलोचनायें सुनी, गलियां खाई, और कई प्रकार के कुतर्कों का सामना किया, यह सब क्यों ? क्या जरूरत थी उसे मुझे सब सहन करने कि, झेलने कि, भुगतने की ?

पर यह आवश्यक था, तुम्हारी वजह से आवश्यक था, तुम्हें अपने साथ सिद्धाश्रम ले जाने के लिए आवश्यक था, तुम्हें सिद्धयोगा झील के किनारे बैठाने के लिए आवश्यक था, और आवश्यक था उन ऋषियों, मुनियों, योगियों के दर्शन कराने के लिए, उस ब्रह्म स्वरुप स्वामी सच्चिदानंद जी के चरणों में बिठाने के लिए, और आवश्यक था तुम्हारे जीवन की मलिनता, तुम्हारे जीवन दोष और तुम्हारे जीवन के पापों को समाप्त करने के लिए

और मैंने ऐसा किया, मेरा प्रत्येक क्षण इस बात के लिए कृतसंकल्प था, और है कि मैं तुम्हें समाज में गर्व से सिर तान कर खड़ा रहने की प्रेरणा दूं, मैं तुम्हें इस गंदगी से भरे समाज में देवदूत बनाकर खड़ा कर सकूं, तुम्हारी आँखों में एक चमक पैदा कर सकूं, तुम्हारे पंखों में इतनी ताकत दे सकूं, कि वह आकाश में सुदूर ऊंचाई पर बिना थके पहुँच सकें, और उस ब्र्हमत्व का आनंद ले सकें, मैं तुम्हें उन इन्द्र धनुष के रंगों पर रंग बिखेरने के लिए तैयार कर सकूं, जहाँ विस्तृत आकाश हो, जहां आनन्द का समुद्र लहलहा रहा हो, जहाँ प्रेम और माधुर्यता की शीतल बयार हो, जहाँ पूर्णता और सिद्धियाँ जयमाला लिए तुम्हारे गले में हार डालने के लिए उद्दत और उत्सुक हो

और यह सब बराबार हो रहा है, तुमने अपने आपको पहली बार पहिचानने का प्रयत्न किया है, पहली बार यह अहसास किया है कि तुम संसार में अकेले नहीं हो, कोई तुम्हारा रखवाला अवश्य है, जो तुम्हारे जीवन कि बराबर चौकीदारी कर रहा है, कोई ऐसा व्यक्तित्व तुम्हारे जीवन में अवश्य है, जिसे अपनी चिंताए, परेशानियां और समस्यांए खुशी-खुशी देकर अपने आपको हल्का कर सकते हो, और मुझे तुम जो दे रहे हो, उससे मुझे प्रसन्नता है

मैं तो तुम्हें स्पष्ट रूप से कहता आया हूँ, कि जब जिंदगी के इस मोड़ पर मैं तुमसे मिला हूँ, तो फिर तुम्हें अपनी आँखें खोल देनी चाहिए, अपने तन्द्रा से जाग कर मुझे पहिचानने का प्रयास करना चाहिए, तुम मृत्यु की जिस पगडण्डी पर बढ रहे हो, उससे पलट कर मेरा हाथ पकड़ लेना चाहिए, मेरे पांवों से पांव मिला कर बढना चाहिए, क्योंकि में तुम्हें जिस रास्ते पर गतिशील कर रहा हूँ, वह अमृत्यु का रास्ता है, वह आनन्द का पथ है, वह सिद्धाश्रम का मार्ग है, जहाँ सर्वत्र प्रसन्नता आह्लाद, खुशी, चेतना और प्रफुल्लता है, जहाँ बुढापा नहीं है, जहाँ रोगों का आक्रमण नहीं है, जहाँ चिंताएं आस-पास खड़ी दिखाई नहीं देतीं, जहाँ बाधाए आगे बढ कर तुम्हारा रास्ता नहीं रोक पाती

क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ, क्योंकि तुम्हारे पांव मेरे पांव के साथ आगे बढ रहे हैं, क्योंकि तुम्हारे जीवन का ध्यान रखने वाला, तुम्हारे जीवन को आह्लादकारक बनाने वाला और तुम्हारे जीवन के प्रत्येक क्षण का हिसाब-किताब रखने वाला साथ है

और में कहता हूँ कि अब तुम्हारे द्वारा दी हुई पीड़ाएं मेरा मन झेलने के लिए तैयार नहीं है, कब तक आप बार-बार जन्म लेते रहेंगे, कब तक आप मॉल-मूत्र से लिप्त जिंदगी को ढोते रहेंगे, कब तक आप इन अभावों कि विषैली हवा में साँस लेते रहेंगे, कब तक आप अपने जीवन को जलाते रहेंगे, आखिर कब तक ?

और यह गुरु पूर्णिमा तुम्हारे इन ‘कब तक’ का उत्तर पाने का पर्व है, यह आनंद और सौभाग्य का पर्व है, यह आनन्द और सौभाग्य प्राप्त करने का अवसर है, यह एक ऐसा क्षण है, जहाँ से गुजरने पर सब कुछ प्राप्त हो सकता है, यह एक ऐसा त्यौहार है, जब तुम अपने जीवन कि गहराई में उतर सकोगे, अपने प्राणों से एकाकार हो सकोगे, अपने प्राणों के माध्यम से मुझे पहिचान सकोगे और देख सकोगे कि पिछले कई-कई जन्मों से इन्हीं प्राणों से एकीकृत हो, पहली बार अनुभव कर सकोगे कि इस क्षण से तुम, निर्मल पवित्र और दिव्य बन कर समाज से ऊपर उठ कर अपना व्यक्तित्व स्पष्ट कर सकोगे

और मैं इस गुरु पूर्णिमा पर यह सब कुछ करने के लिए कृत संकल्प हूँ, इस गुरु पूर्णिमा पर मानस के समुद्र में गहराई के साथ तुम्हारे साथ डुबकी लगाने के लिए तैयार हूँ, इस गुरु पूर्णिमा पर तुम्हारी हथेलियाँ मोतियों से भरने के लिए उद्दित हूँ, मैं इस गुरु पूर्णिमा पर दुर्गन्ध युक्त विषैले वातावरण से बाहर निकाल कर आनन्द के उद्यान में खड़ा कनरे के लिए प्रयत्नशील हूँ, जहाँ तुम सद्गुरु की सुगंध से आप्लावित हो सको, गहराई के साथ साँस ले सको, अपने प्राणों में आनन्द की प्राणवायु भर सको, अपने रक्त को नई चेतना दे सको, अपने जीवन को नए ढंग से आवाज़ दे सको, अपनी आँखों में एक नई चमक, एक नया ओज ला सको, और तुम्हारे चेहरे पर दृढ़ता आ सके, तुम्हारा सिर गर्व से ऊँचा उठ सके, तुम सही अर्थों में अपने पंख फडफडा सको, और इस नीले आकाश में पूरी क्षमता के साथ उड़कर समस्त ब्रह्माण्ड को अपनी बाँहों में समेत सको

मैं इन सब के लिए ही गुरु पूर्णिमा पर आवाज दे रहा हूँ, क्योंकि यह तुम्हारा स्वंय का पर्व है यदि शिष्य सही अर्थों में शिष्य है, यदि सही अर्थों में वह मेरी आत्मा का अंश है, यदि सही अर्थों में मेरी प्राणश्चेतना है, तो उसके पांव किसी भी हालत में रुक नहीं सकते, समाज उसका रास्ता रोक नहीं सकता, परिवार उसके पैरों में बेडियाँ डाल नहीं सकता, वह तो हर हालत में आगे बढकर गुरु चरणों में, मुझ में एकाकार होगा ही, क्योंकि यह एकाकार होना ही जीवन की पूर्णता है, और यदि ऐसा नहीं हो सका तो वह शिष्यता ही नहीं है, वह तो कायरता है, बुदजिली है, कमजोरी है, नपुंसकता है, और मुझे विश्वास है, कि मेरे शिष्यों के साथ इस प्रकार के घिनौने शब्द नहीं जुड़ सकते

और यह सब ऋण तुम्हारे ऊपर है, इस जन्म का ही नहीं, पिछले कई जन्मों के ऋण तुम्हारे ऊपर हैं, और यह पर्व उस गुरु ऋण से उऋण होने का पर्व है, यह पर्व सही अर्थों में अपने आप को मुक्त करने का पर्व है, सही अर्थों में आनन्द प्राप्त करने का पर्व है, और पिछले कई जन्मों से जो कुछ ऋण तुम्हारे ऊपर हो गया है, उससे पूर्णता: मुक्ति पाने का, उऋण होने का पर्व है

और मैं इस पर्व पर दोनों बाहें फैलाये प्रतीक्षा कर रहा हूँ

Saturday, May 19, 2012

Meetings of Revered Gurudev in Gurudham (Jodhpur) in May 2012

Dates: 19, 20, 21 May

Address: Pracheen Mantra Yantra Vigyan
1-C, Panchavati Colony,
In Front of N.C.C. Ground,
Ratananda, Jodhpur - 342011 (Rajasthan)

Phone: 0291-2517025

Friday, May 18, 2012

जो साधक बद्रीनाथ में आयोजित सदगुरु मंजुल महोत्सव में सम्मिलित नहीं हो सकते

जो साधक किसी कारणवश २,३ और ४ २०१२ को बद्रीनाथ में आयोजित सदगुरु मंजुल महोत्सव में सम्मिलित नहीं हो सकते हैं, परन्तु वे इस महोत्सव में विशेष रूप से प्रदान की जाने वाली दीक्षाओं और साधनाओंहैं जैसे की तारा लक्ष्मी दीक्षा, अखण्ड शिव गौरी सौभाग्...यवती दीक्षा, सिद्धाश्रम गमन दीक्षा, कपाल कुण्ड साधना को प्राप्त करना चाहते को अब अपने स्थान पर ही प्राप्त कर सकते हैं

सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंदजी की असीम कृपा से, पूजनीय कैलाश गुरुदेवजी फोटो द्वारा शक्तिपात दीक्षा बद्रीनाथ से ही प्रदान करेंगे

इसके लिये आपको ३ जून से पहले केवल अपना और अपने प्रियजनों का फोटो और साथ में १५००/- (1500/-) का डिमांड ड्राफ्ट या मनीऑर्डर “प्राचीन मंत्र यन्त्र विज्ञान” के नाम पर भेज दें
आप चाहे तो उक्त राशि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, यू.आई.टी., जोधपुर प्राचीन मंत्र यंत्र विज्ञान खाता क्रमांक ३१७६३६८१६३८ (31763681638)अथवा आई.डी.बी.आई., चौपासनी रोड, जोधपुर कैलाश श्रीमाली खाता क्रमांक ००५८१०४०००३८११२३ (0058104000381123) में भेज कर भी शक्तिपात दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं

फोटो एवं डिमांड ड्राफ्ट / मनीऑर्डर भेजने का पता है :

प्राचीन मंत्र यंत्र विज्ञान


१-सी , पंचवटी कॉलोनी, रातानाडा, जोधपुर (राजस्थान)


फोन: ०२९१-२५१७०२५ (0291-2517025)


मोब : ०७५६८९३९६४८ (07568939648)


फैक्स: ०२९१-२५१७०२८ (0291-2517028)

फोटो एवं डिमांड ड्राफ्ट / मनीऑर्डर भेजने के बाद आप ऊपर दिए गए नंबर पर संपर्क कर अपनी दीक्षा के बारे में ज्ञात करवा दीजिए



For Sadhaks who cannot attend Sadguru Manjul Mahotsav in Badrinath

Those sadhaks who are not able to attend the Sadguru Manjul Mahatosav in Badrinath on 2nd, 3rd and 4th June, 2012 and want to take the dikshas and sadhanas which will be provided especially in the Manjul Mahotsav in Badrinath like tara lak...shmi diksha, akhand shiv gauri saubhagyavati diksha, siddhashram gaman diksha, kapaal kund sadhana need not lose their heart.

Now with the blessings of Sadgurudev Nikhileshwaranandji, Revered Gurudev Shri Kailash Chandra Shrimaliji will impart Shaktipaat Dikshas to these sadhaks from Badrinath itself through photograph.

All you have to do is to send your photograph or of your near and dear ones whom you want to take these dikshas and a demand draft or money order of Rs. 1500/- in the name of “Pracheen Mantra Yantra Vigyan” before 3rd June, 2012. You can also transfer the amount of Rs. 1500/- in the Pracheen Mantra Yantra Vigyan Account Number 31763681638 of State Bank of India, U.T.I., Jodhpur or Kailash Shrimali Account Number 0058104000381123 of I.D.B.I. Bank, Chaupasani Road, Jodhpur.

The address for sending the photographs and demand draft / money order is:

Pracheen Mantra Yantra Vigyan


1-C, Panchvati Colony, Ratanada, Jodhpur (Rajasthan)


Contact Number: 0291-2517025


Mob: 07568939648


Fax: 0291-2517028

After sending the request for diksha, please send a reminder at above given contact numbers and fax number.

Thursday, May 3, 2012

All those members of Pracheen Mantra Yantra Vigyan whose annual membership have expired are requested to renew their annual membership.
A free gift of energized Heerak Khappar Yantra is being sent to all these members through V.P.P. of Rs. 350/-. After the acceptance of this V.P.P., your annual membership will be renewed and then onwards, magazine will be sent to you on regular basis.
All other sadhaks and followers of Revered Gurudev are also requested to subscribe for the Pracheen Mantra Yantra Vigyan monthly magazine.
This monthly magazine has been dedicated to the revealing of the knowledge and wisdom of ancient Yogis and Rishis. It opens the gate to the amazing world of Sadhanas, Astrology, Ayurveda, Alchemy, Numerology, Palmistry, Hypnotism, Mantras, Tantra and Spiritualism . The mag...azine by propagating true and authentic knowledge aims at banishing misconceptions and fears regarding the ancient Indian knowledge of the spiritual world.
The magazine carries wonderful Sadhanas every month which can be performed in special auspicious moments in that month for gaining solutions to the various problems of human life. Powerful Mantra practices based on the Vedic knowledge are revealed which could help the common man to overcome tensions, diseases, adversities, poverty and enemies. Thousands of readers have been initiated into the field of Sadhanas through this powerful medium.
The magazine also carries the divine experiences of Sadhaks and disciples who have tried Sadhanas and benefited through them. Besides it gives valuable information related forthcoming Sadhanas camps and the monthly astrological forecast.
The most precious part of the magazine is very special features based on Revered Gurudev's discourses which deal with the problems faced by Sadhaks during Sadhanas, and dwell on the intricacies of the world of spiritualism. Needless to say these words of Gurudev have helped several lost, troubled souls to find a new ray of hope in their lives. In the new millennium the magazine aims at providing fast and quick solutions to all problems of modern human life.
The "Pracheen Mantra Yantra Vigyan" Magazine is available primarily in Hindi language. There is a small English section in each issue.
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Wednesday, May 2, 2012

Rambha Sadhana


रसौ वै सः – रस रूप में ही है |

रम्भा साधना

अप्सरा विद्या की साधनाओं में सर्वोच्च साधना कही गई है – अप्सरा साधना क्योंकि अप्सरा प्रतीक है सौंदर्य कि और सौंदर्य ही आधार है इस संसार में स्पन्दंशीलता का, गतिशीलता का...
सौंदर्य युक्त होना, श्रृंगार करना मानव से भी अधिक प्रकृति का गुण है | यह सारी कि सारी प्रकृति अपना श्रृंगार करने में हर क्षण व्यस्त सी बनी रहती है, नित नूतन होती रहती है और इस कारन से प्रकृति हमें मनोहर प्रतीत होती है |

श्रृंगार करने का अर्थ है अपने-आप को जीवन में जोड़कर रखना, स्वं कि प्रस्तुति सजीव व स्पन्दित रूप में करते रहना, जीवन में किसी जड़ता का प्रवेश तो दूर उसका कोई आभास तक न होने देना |
श्रृंगार करना तो अपने आप का सम्मान करना है और अपने आप का सम्मान करने के बाद ही तो कोई कर सकता है किसी दूसरे का सम्मान, इस जीवन का सम्मान |

जहाँ जीवन का सम्मान होता है वहां यह सम्भव ही नहीं कि कोई श्रृंगार के माध्यम से प्रस्फुटन और विकास होता है सौंदर्य का और सौंदर्य ही आधार है इस जगत में गतिशीलता का |
यह बात जितनी भौतिक रूप से सत्य है उतनी है सत्य है अध्यात्मिक व साधनात्मक रूप से भी |

भौतिक रूप में सौंदर्य का जो स्थान है, जो उसके स्पर्श से प्राप्त होने वाली माधुर्य कि लहरियां होती हैं वै वर्णन से कहीं अधिक विषय हैं अनुभूतियों का और अध्यात्मिक रूप में यही बात वर्णित है नाद व बिंदु के मिलन के रूप में |
नाद प्रतीक है है शिवत्व का एवं बिंदु प्रतीक है शक्ति का | इस सम्पूर्ण सचराचर सृष्टि कि रचना ही नाद व बिंदु के मिलन से सम्भव होई है और नित्य हो रही है तथा जिस उत्प्रेरक कि उपस्थिति में असम्भव हो रही है वह सौंदर्य है |

सौंदर्य से सृजन होता है काम का और इसी कारणवश भारतीय संस्कृति में कम का स्तन तुच्छ या हेय न होतार एक पुरुषार्थ के रूप में स्वीकार हुआ है |
भारतीय संस्कृति में काम का अर्थ दैहिक भावनाओं तक ही सीमित नहीं है वरन यह अपने उदात्त रूप में साधना भी है, नाद व बिंदु के समवेत रूप की |

काम तत्व की उपेक्षा किसी भी मनुष्य से सम्भव नहीं, यहाँ तक कि किसी संन्यासी से भी नहीं क्योंकि प्रत्येक जीवन कि उत्पति का माध्यम काम है |
जिस हेतु अर्थात जिस काम भावना के स्फुरण से जीव का गर्भ में अंकन होता है वह बीजारोपण के कल से ही उस जीवन के सूक्ष्म स्मृति में कहीं न् कहीं अंकित हो जाता है और वही उसके भीतर भी  एक सघन भाव बन कर सदैव साथ-साथ चलती रहती है |

किसी भी व्यक्ति में कम भावना तो हो किन्तु, कम वासना न् हो क्योंकि केवल कामवासना ही नहीं कोई भी वासना अपने आप में प्रवंचना होती है | इसके लिए क्या उपाय सम्भव हो सकता है ?
इसका एकमात्र उत्तर सौंदर्य कि साधना या स्वयं में सौंदर्य बोध विकसित करना है | सौंदर्य बोध कि भावना का विकास हो जाने के बाद ही कोई उस परम तत्व का सौंदर्य समझ सकता है जो जगत के समस्त सौंदर्य का सृजन कर्ता है | निश्चित रूप से कोई भी सृजनकर्ता अपने सृजन से कुछ अधिक ही प्रभावशाली होता है |

सौंदर्य शब्द कहते ही किसी के भी मानस में जो बिम्ब सर्वप्रथम आता है वह किसी स्त्री का होता है | सौंदर्य व स्त्री मानों एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हों और यह असहज भी नहीं है क्योंकि इस सृष्टि में सौंदर्य का सर्वाधिक स्पन्दनशील रूप एक स्त्री ही हो सकती है, मात्र दैहिक रूप में ही नहीं वरन उससे कहीं अधिक कोमल भावनाओं के अभिव्यक्ति करण के रूप में |
भावनाओं के सौंदर्य से जो उत्पन्न होता है उसे ही लास्य अर्थात नर्तन कहा गया है और ऐसे नर्तन में कोई आवश्यक नहीं कि हाथ-पांव कि गतिशीलता हो | एक नर्तन कि स्थिति वह भी होती है जहाँ मन नृत्य कर उठता है और ऐसा तब होता है जब मन में सौंदर्य बोध कि कोई धारणा निर्मित होई हो |

पत्रिका में निरंतर अप्सरा साधना अथवा यक्षिणी साधनायें प्रस्तुत करने का यही अर्थ है कि साधकों में सौंदर्य बोध प्रस्फुटित हो सके, उनका लास्य से परिचय हो सके क्योंकि किसी भी देवी अथवा देवता का मूल स्वरुप लास्यमय ही होता है, वै मानव कि भांति विषाद से घिरे नहीं होते |
एक छोटा बच्चा जब पड़ने जाता है तो उसे छोटे अ से अनार पढाया जाता है यदपि छोटे अ से अभ्यर्थना जैसा शब्द भी है किन्तु वह बच्चा उस शब्द का भाव ग्रहण नहीं कर सकता |

सौनाद्री को भी व्यखियत करते समय ( उसके प्राथमिक चरण में ) उसकी प्रचलित मान्यताओं के रूप में प्रस्तुत करना एक विवशता रही है किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि सौंदर्य शब्द के भाव को ही सीमित कर दिया जाए |
साथ ही यदि ऐसी व्याख्या से कोई कामपरक भाव सामने आता भी है है तो वह निरंतर टेलिविजन, विशेषकर म्यूजिक चैनल्स से प्रसारित हो रही नाभि के नीचे के उन ‘शिष्ट’ झटकों से तो अधिक शिष्ट है ही, जिन्हें आज परिवार में युवा भाई और बहन साथ-साथ बैठकर देखने में कोई झिझक महसूस नहीं करते |

........ और कहाँ तक वर्जित कर भी सकता है कोई ऐसी बातों को ? काम तो मनुष्य का सहज प्रवाह है | प्रवाह को एक और से वर्जित करेंगे तो कहीं और से मार्ग खोज लेगा, भले ही उस प्रयास में कोई विकृति ही क्यों न आकर समाजाए |
मनुष्य में कोई विकृति न् समाए इसी कारणवश तो विवाह जैसे संस्कार का जनम हुआ | एक स्त्री और एक पुरुष को परस्पर संयुक्त करने कि धारणा बनी अन्यथा आदिम युग में तो विवाह जैसी कोई धारणा ही नहीं थी |

एक स्त्री और एक पुरुष के मिलने से जो इकाई बनती है वह भी एक ही होती है – कम से कम हमारी संस्कृति तो हमें यही बताती है |
ऋग्वेद में एक नवविवाहित को आशीर्वचन देते समय कहा गया है – वश पुत्रवती भव, एकादश पुत्र भव, सौभाग्य भव | और ऐसी कथन के पीछे जो भव हैं वह यह है कियौवनावस्था के पश्चात पति और पत्नी परस्पर वासना के भव के पृथक हो जाये तथा स्त्री मातृत्व के भव से इतनी अपूरित हो जाए कि उसे अपना पति भी एक शिशु सादृश्य लगने लगे |

जीवन के प्रति ऐसी सम्पूर्ण दृष्टि कि भावना में फिर कम कि चर्चा करना वहां से न्यून हो सकता था ? सौंदर्य साधनाएं ऐसे ही स्थित‍‍‌‌प्रज्ञ ऋषियों द्वारा सृजित कि गयी है |
मनुष्य कि मूल प्रवृतियों का समाधान विवाह भले ही समाज में एक उपाय के रूप में स्वीकार कर लिया गया हो किन्तु आवश्यक नहीं कि इस उपाय के द्वारा उसकी प्रवृतियों का उदातिकरण भी हो जाए |
यदि ऐसा होता तो एक विवाह के बाद दूसरा विवाह के बाद तीसरा ... या विवाह एक से करते हुए भी कई स्त्रियों से सम्बन्ध रखने के छटपटाहट न होती व्यक्ति में |

व्यक्ति में भावनाओं का उदात्तीकरण जिस माध्यम से हो सकता है वह सौंदर्य बोध ही है | एक व्यक्ति बाग में जाता है और खिले हुए फूलों कि मुस्कराहट को निहारता हुआ मन ही मन में मुस्कुरा कर आगे बढ जाता है और वहीँ कोई दूसरा व्यक्ति उसे तोड़कर अपने कोट में लगा लेना चाहता है या कोई तीसरा उस फूल को सूंघकर मसलकर फ़ेंक देता है |
इनमें से प्रथम व्यक्ति सौंदर्य-बोध से युक्त व्यक्ति है, दूसरा व्यक्ति भोगी तथा तीसरा किसी बलात्कारी कि मानसिकता से युक्त व्यक्ति है |

अब साधक स्वं ही तय कर ले कि वह किस मानसिकता में खड़ा है | आखिर भावनाओं का भी कुछ महत्व होता होगा – यदि जीवन में नहीं तो कम से कम साधना मार्ग में अवश्य ही |
जीवन का उत्स कल अर्थात जिस कल में मनुष्य अपने जीवन का निर्माण सतत रूप से करता है वह २१ से ५० वर्ष के मध्य होता है | पचास वर्ष के बाद किसी नवीन भाव को स्वीकार करने कि चेतना अथवा किसी नये कार्य को हाथ में लेने कि क्षमता कम होने लग जाती है

जीवन का यह मध्य काल केवल शारीरिक व मानसिक क्षमता कि दृष्टि से ही नहीं वरन पचास वर्ष के पश्चात के जीवन को भी क्षमतावान बनाए रखने कि दृष्टि से महत्वपुर्ण कल होता है |

जीवन के ऐसे ही क्षणों में जिस साधना को, भले ही अन्य किसी साधना में विलम्ब कर, सम्पन्न कर लेना चाहिए वह होती है अप्सरा साधना क्योंकि अप्सरासाधना से शारीर को जो उर्जा और शारीरिक उर्जा से भी अधिक आवश्यक मानसिक उल्लास प्राप्त होता है वह आगामी आजीवन के लिए अनेक रूपं से लाभप्रद सिद्ध होता है |
यह एक अनुभूत तथ्य है कि यदि अप्स्सरा साधना को सम्पन्न करने के उपरांत अन्य साधनाओं को प्रारम्भ किया जाए तो उनमें अपेक्षाकृत अधिक तीव्रता से सफलता प्राप्त होने कि स्थिति बन जाती हक्योंकी अप्सरा साधना करने के पश्चात निश्चय ही साधक के शारीर में ऐसे परिवर्तन हो जाते हैं जो आतंरिक रूप से उसे नित्य यौवनयान बनाये रखने में सहायक सिद्ध होते हैं |

शास्त्रों में अप्सरा से सम्बंधित अनेक विधानों का विवरण प्राप्त होता है जिनमें कहीं छह लाख तो कहीं सत्रह लाख मन्त्र जप करने का विधान है |

यहाँ हमारा तात्पर्य उनकी समालोचना करना न होकर इस तथ्य को स्पष्ट करना है कि यदि साधक को उचित क्षणों में गुरु परम्परा में सुरक्षित किसी दुर्लभ मन्त्र कि प्राप्ति हो जाए तो कोई आवश्यक नहीं कि वह स्वंय को किसी जटिल विधान में उलझाये |

किसी भी साधना कि विशिष्टता जिस बात में निहित होती है वह मात्र यही है कि मन्त्र प्रसंगर्षित अर्थात सहज शब्दों में गुरु प्रदत्त हो |

संयोग से आगामी..............अधिष्ठात्री वर्ग कि अप्सराओं के रूप में मान्य अप्सराओं में एक रम्भा अप्सरा कि जयन्ती पड़ रही है जो साधना का एक श्रेष्ठ मुहूर्त है |

उच्चकोटि कि अप्सराओं कि श्रेणी में रम्भा का प्रथम स्थान है, जो शिष्ट और मर्यादित मणि जाती है, सौंदर्य कि दृष्टि से अनुपमेय कही जा सकती है | शारीरिक सौंदर्य वाणी कि मधुरता नृत्य, संगीत, काव्य तथा हास्य और विनोद यौवन कि मस्ती, ताजगी, उल्लास और उमंग ही तो रम्भा है | जिसकी साधना से वृद्ध व्यक्ति भी यौवनवान होकर सौभाग्यशाली बन जाता है | जिसकी साधना से योगी भी अपनी साधनाओं में पूर्णता प्राप्त करता है | अभीप्सित पौरुष एवं सौंदर्य प्राप्ति के लिए प्रतेक पुरुष एवं नारी को इस साधना में अवश्य रूचि लेनी चाहिए | सम्पूर्ण प्रकृति सौंदर्य को समेत कर यदि साकार रूप दिया तो उसका नाम रम्भा होगा | सुन्दर मांसल शारीर, उन्नत एवं सुडौल वक्ष: स्थल, काले घने और लंबे बाल, सजीव एवं माधुर्य पूर्ण आँखों का जादू मन को मुग्ध कर देने वाली मुस्कान दिल को गुदगुदा देने वाला अंदाज यौवन भर से लदी हुई रम्भा बड़े से बड़े योगियों के मन को भी विचिलित कर देती है | जिसकी देह यष्टि से प्रवाहित दिव्य गंध से आकर्षित देवता भी जिसके सानिध्य के लिए लालायित देखे जाते हैं |

सुन्दरतम वर्स्त्रलान्कारों से सुसज्जित, चिरयौवन, जो प्रेमिका या प्रिय को रूप में साधक के समक्ष उपस्थित रहती है | साधक को सम्पूर्ण भौतिक सुख के साथ मानसिक उर्जा, शारीरिक बल एवं वासन्ती सौंदर्य से परिपूर्ण कर देती है |

इस साधना के सिद्ध होने पर वह साधक के साध छाया के तरह जीवन भर सुन्दर और सौम्य रूप में रहती है तथा उसके सभी मनोरथों को पूर्ण करने में सहायक होती है |

रम्भा साधना सिद्ध होने पर सामने वाला व्यक्ति स्वंय खिंचा चला आये यही तो चुम्बकीय व्यक्तिव है  |

साधना से साधक के शरीर के रोग, जर्जरता एवं वृद्धता समाप्त हो जाती है |

यह जीवन कि सर्वश्रेष्ठ साधना है | जिसे देवताओं ने सिद्ध किया इसके साथ ही ऋषि मुनि, योगी संन्यासी आदि ने भी सिद्ध किया इस सौम्य साधना को |

इस साधना से प्रेम और समर्पण के कला व्यक्ति में स्वतः प्रस्फुरित होती है | क्योंकि जीवन में यदि प्रेम नहीं होगा तो व्यक्ति तनावों में बिमारियों से ग्रस्त होकर समाप्त हो जायेगा | प्रेम को अभिव्यक्त करने का सौभाग्य और सशक्त माध्यम है रम्भा साधना | जिन्होंने रम्भा साधना नहीं कि है, उनके जीवन में प्रेम नहीं है, तन्मयता नहीं है, प्रस्फुल्लता भी नहीं है |

साधना विधि

सामग्री – प्राण प्रतिष्ठित रम्भोत्कीलन यंत्र, रम्भा माला, सौंदर्य गुटिका तथा साफल्य मुद्रिका |

यह रात्रिकालीन २७ दिन कि साधना है | इस साधना को किसी भी पूर्णिमा को, शुक्रवार को अथवा किसी भी विशेष दिन प्रारम्भ करें | साधना प्रारम्भ करने से पूर्व साधक को चाहिए कि स्नान आदि से निवृत होकर अपने सामने चौकी पर गुलाबी वस्त्र बिछा लें, पीला या सफ़ेद किसी भी आसान पर बैठे, आकर्षक और सुन्दर वस्त्र पहनें | पूर्व दिशा कि ओर मुख करके बैठें | घी का दीपक जला लें | सामने चौकी पर एक थाली या पलते रख लें, दोनों हाथों में गुलाब कि पंखुडियां लेकर रम्भा का आवाहन करें |

|| ओम ! रम्भे अगच्छ पूर्ण यौवन संस्तुते ||

यह आवश्यक है कि यह आवाहन कम से कम १०१ बार अवश्य हो प्रत्येक आवाहन मन्त्र के साथ एक गुलाब के पंखुड़ी थाली में रखें | इस प्रकार आवाहन से पूरी थाली पंखुड़ियों से भर दें |

अब अप्सरा माला को पंखुड़ियों के ऊपर रख दें इसके बाद अपने बैठने के आसान पर ओर अपने ऊपर इत्र छिडके | रम्भोत्कीलन यन्त्र को माला के ऊपर आसान पर स्थापित करें | गुटिका को यन्त्र के दाँयी ओर तथा साफल्य मुद्रिका को यन्त्र के बांयी ओर स्थापित करें | सुगन्धित अगरबती एवं घी का दीपक साधनाकाल तक जलते रहना चाहिए |

सबसे पहले गुरु पूजन ओर गुरु मन्त्र जप कर लें | फिर यंत्र तथा अन्य साधना सामग्री का पंचोपचार से पूजन सम्पन्न करें |  स्नान, तिलक, धुप, दीपक एवं पुष्प चढावें |

इसके बाद बाएं हाथ में गुलाबी रंग से रंग हुआ चावल रखें, ओर निम्न मन्त्रों को बोलकर यन्त्र पर चढावें

|| ॐ दिव्यायै नमः ||

|| ॐ प्राणप्रियायै नमः ||

|| ॐ वागीश्वये नमः ||

|| ॐ ऊर्जस्वलायै नमः ||

|| ॐ सौंदर्य प्रियायै नमः ||

|| ॐ यौवनप्रियायै नमः ||

|| ॐ ऐश्वर्यप्रदायै नमः ||

|| ॐ सौभाग्यदायै नमः ||

|| ॐ धनदायै रम्भायै नमः ||

|| ॐ  आरोग्य प्रदायै नमः ||

इसके बाद उपरोक्त रम्भा माला से निम्न मंत्र का ११ माला प्रतिदिन जप करें |

मंत्र : ||  ॐ हृीं रं रम्भे ! आगच्छ आज्ञां पालय मनोवांछितं देहि ऐं ॐ नमः ||

प्रत्येक दिन अप्सरा आवाहन करें, ओर हर शुक्रवार को दो गुलाब कि माला रखें, एक माला स्वंय पहन लें, दूसरी माला को रखें, जब भी ऐसा आभास हो कि किसी का आगमन हो रहा है अथवा सुगन्ध एक दम बढने लगे अप्सरा का बिम्ब नेत्र बंद होने पर भी स्पष्ट होने लगे तो दूसरी माला सामने यन्त्र पर पहना दें |

२७ दिन कि साधना प्रत्येक दिन नये-नये अनुभव होते हैं, चित्त में सौंदर्य भव भाव बढने लगता है, कई बार तो रूप में अभिवृद्धि स्पष्ट दिखाई देती है | स्त्रियों द्वारा इस साधना को सम्पन्न करने पर चेहरे पर झाइयाँ इत्यादि दूर होने लगती हैं |

साधना पूर्णता के पश्चात मुद्रिका को अनामिका उंगली में पहन लें, शेष सभी सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें | यह सुपरिक्षित साधना है | पूर्ण मनोयोग से साधना करने पर अवश्य मनोकामना पूर्ण होती ही है |

न्यौछावर : ५४०/-

रम्भा शक्तिपात दीक्षा प्राप्त करने से जीवन में आकर्षण सम्मोहन सौंदर्य यौवन व पूर्ण चेतना युक्त कामदेवमय पुरुषत्व कि निश्चित रूप से प्राप्ति होती है |               न्यौछावर : २१००/- अतिरिक्त

 साधना सामग्री के लिए संपर्क करें-

गुरुधाम ,1-C ,पंचवटी कालोनी ,रातानाडा ,जोधपुर,पिन-342001,राजस्थान |

फ़ोन - 0291-2517025