Wednesday, June 20, 2012
Delhi
२०, २१, २२ जून, २०१२ – प्रत्येक साधना निशुल्क
कैलाश सिद्धाश्रम
सदगुरुदेव सच्चिदानन्द महाराज, प्रभु निखिलेश्वरानन्दजी के आशीर्वाद से गुरुदेव कैलाश श्रीमाली जी देल्ही
आश्रम कैलाश सिद्धाश्रम में प्रत्येक साधक शिष्य को निम्नाकिंत साधना प्रयोग
निशुल्क सम्पन्न करायेंगे |
समस्त साधकों एवं शिष्यों के लिए यह योजना कार्तिक मास से प्रारम्भ कि गई है, इसके अंतर्गत विशेष दिवसों पर
दिल्ली एवं जोधपुर में पूज्य गुरुदेव के निर्देशन में यह साधनाएं पूर्ण विधि-विधान
से सम्पन्न होती हैं | यदि श्रधा व विश्वास हो, तो उसी दिन से साधनाओं में सिद्धि का अनुभव भी होने लगता है |
चन्द्रघंटा दीक्षा
जीवन पग-पग परिवर्तनशील है, न जाने कब, कौन-सी
विकत परिस्थिति से गुजरना पड़ जाय | शत्रु तो हार मोड पर तैनात सैनिकों की तरह खड़े
रहते हैं हमला करने के ,लिए, उस अचानक प्रहार को झेल नहीं पाता, और ऐसी स्थिति में
व्यक्ति निर्णय नहीं कर पाता कि अब वह क्या करे... क्या नहीं करे | मनुष्य के
शत्रु एक नहीं हजारों होते हैं, जब तक वह एक को परास्त करता है, तब तक दूसरा उस पर
वार कर देता है और इस सामाजिक-संग्राम में युद्ध करते-करते उसकी शक्ति क्षीण होने
लगती है, क्योंकि व्यक्ति इस जीवन रुपी संग्राम को अपनी शक्ति के बल पर नहीं जीत
सकता, इसके लिए उसके पास दैविक बल होना आवश्यक है | सूर्यदेव के अनुसार समस्त देवी
शक्ति को चंद्रघंटा के रूप में सिद्ध कर लेने से वह साधक अजेय हो जाता है | यह
दुर्लभ अद्वितीय दीक्षा प्राप्त करने से शत्रु काल के सुपुर्द हो जाता है और उसका विनाश
उतना ही निश्चित हो जाता हैहै जितना कि सूर्य और चन्द्र का अस्तित्व में होना | यह
दीक्षा व्यक्ति को ऊर्जास्विता, तेजस्विता और प्रखरता प्रदान करता है | वह व्यक्ति
समाज में सम्माननीय एवं पूजनीय होता है | कुंडली निर्मित दुर्योग फलहीन हो जाते
हैं एवं उसकी दरिद्रता, रोग, शत्रुभय, ऋण आदि कि स्थिति स्वतः ही नष्ट हो जाती है
और वह मान-सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करने लगता है |
भाग्योदय दीक्षा
व्यक्ति इस क्षण अगर तनाव
को भूल कर, बाधाओं और समस्याओं को अलग कर, उल्लास युक्त हो कर उमंग के साथ जीवन को
व्यतीत करता है तो अगले क्षण से पुनः उन्हीं तनावों, समस्याओं और बाधाओं में फंस
जाता है | जीवन का अर्थ समस्याओं, बाधाओं, तनावों से जूझना ही रह गया है | व्यक्ति
चाहे तो भी इस समस्याओं कि व्यूह रचना से नहीं निकल पाता है, वह छोड़ना भी चाहे तो
छोड़ नहीं पाता है | जीवन के अनेक पक्ष और वे भी पूर्णता से, जबकि एक इच्छा के बाद
दूसरी इच्छा का जन्म होता ही है, एक स्थिति में सफलता मिलने के बाद दूसरी स्थिति
सामने आती ही है और इनकी पूर्ति करना हमारे वश में नहीं है | जीवन में कर्तव्य
आवश्यक हो सकते हैं किन्तु जब कर्तव्य आकर जीवन को ग्रसित कर लें तब ? फिर कब
व्यक्ति अपनी इच्छाओं का संसार रचा पाएगा, अपने स्वप्नों को पूर्ण कर पाएगा जिससे
जीवन में प्रसन्नता आए | लेकिन यह दीक्षा प्राप्त करने पर व्यक्ति कितना भी
दुर्भाग्यशाली क्यों न हो, निश्चय ही उसके जीवन में भाग्य का सूर्योदय होता ही है
| उसके जीवन में भाग्योदय रुपी पवित्र शंखध्वनि उच्चारित होती है | बाधाएं, अड़चने
व्यक्ति के मार्ग को स्वतः ही छोड़कर अलग हट जाती हैं | व्यक्ति को जहाँ धन ऐश्वर्य
कि प्राप्ति होती है वहीँ उसे सर्वविधि सौभाग्य प्राप्त होता है | यह दीक्षा
व्यक्ति के अपने जीवन को और अधिक श्रेष्ठतम बनाने के लिए महत्वपूर्ण है |
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