सदगुरु निखिल जन्मोहत्सव
१९, २०, २१ अप्रैल, २०१२
यात्रिका निवास, लाइट हाउस के पास, पुरी (ओडिशा)
जहाँ से गुजरना है मेरे गुरुवर को, वहाँ मेरे सीने के धड़कन बिछा दो !!
... यह पर्व गुरु जन्मोहत्सव का है, उत्सव के क्षणों का है, मिलन के क्षणों का है... मिलन है जीवात्मा का परमात्मा से, मिलन है नदी का समुद्र से, मिलन है धरती का आकाश से... एक ऐसी ही स्वर्णिम बेला, जो एक नव चेतना का आगमन है, एक पुनर्जन्म है, जो जन्म होकर एक अवतरण है, उस देव पुरुष का, जिसने अपने प्रकाश से अज्ञान रुपी अंधकार को दूर किया है, प्रकाश का सृजन किया है |
और यह मिलन कोई सामान्य मिलन नहीं है, यह तो कई – कई जन्मों का मिलन है, कई – कई जन्मों से वे आवाज दे रहे हैं तुम्हे, और हर जिन्दगी में तुम्हे पकड़ने की चेष्टा की है, क्योंकि उनका तो केवल मात्र यही उद्देश्य है, की यह सुगन्ध बसंत में पुरी तरह से मिल जाए, यह बूंद समुन्द्र में पुरी तरह से विलीन हो जाए... और यह बार-बार जन्म लेने की प्रक्रिया एक बारगी ही समाप्त हो जाए |
तुम बिन जीवन का मक्सद क्या............. तुम बिन हर लम्हा क्या....................
है प्रभु ! आपके बिना तो यह जीवन ही निरर्थक है, और इसलिए यह “नीलान्चल निखिल जन्मोहत्सव” हम सब शिष्यों को आवाज दे रही है, बुला रही है, प्राणों की झंकार का मधुर निमंत्रण भेज कर मस्ती में डूबने के लिए, आनन्द से सरोबार होने के लिए, अब यह तो हमारी न्यूनता है, की हम उस झंकार को सुनकर भी अनसुना कर दें |
यह तो इस पृथ्वी लोक के प्रत्येक प्राणी का असीम सौभाग्य है, जो कि परमपूज्य गुरुदेव ने सामान्य मानव के रूप में जन्म लेकर, इस माटी को अपने चरणों कि धूलि से धन्य-धन्य कर दिया, जिसके दर्शन मात्र के लिए उच्चकोटि के ऋषि, मुनि, योगी, संन्यासी भी तरसते रह जाते हैं | ऐसी दिव्य विभूति, जिनके आगे देवता भी नतमस्तक रहते हैं, जिन्हें देखने के लिए अप्सराएं भी लालायित रहती हैं |
उनकी सामीप्यता प्राप्त करना तो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, और यह पूज्य गुरुदेव का इस धारा पर जन्म नहीं, अपितु अवतरण ही हुआ है, जबकि उनके समस्त शिष्यों को उनकी उच्चता का, उनकी श्रेष्ठता का पुर्नाभास है, तो फिर उनके व्यक्तिव का बखान करना तो ऐसा ही है, जैसे – “सूरज को दीपक दिखाना |”
“नीलान्चल निखिल जन्मोहत्सव” ऐसा ही पावन पर्व है, जिसमें भाग ले समस्त साधक व शिष्य गुरुदेव कि आशीर्वाद वर्षा में आप्लावित हो सकते हैं, क्योंकि ऐसी वर्षा जो मन में, आत्मा में, हृदय के वीरान रेगिस्तान में ज्ञान रुपी बीज का अनुकरण कर दें, फिर यह तो एक अद्भुत घटना ही कही जा सकती है इस धारा पर |
जहाँ पूज्य गुरुदेव उपस्थित होते हैं, जहाँ वे अपने ज्ञान का उपदेश देते हुए एक पवित्रमय वातावरण का निर्माण करते हैं, जगन्नाथ पुरी स्थली देव लोक से कम नहीं है, तो क्यों न हम उस दिव्य क्षणोंउन का आनन्द लें और अपने जीवन की व्याधियों, बाधाओं को भुलाकर अपने-आप को मदमस्त कर दें, क्योंकि ये क्षण जो जगन्नाथ पुरी में गुरुदेव के अवतरण दिवस के अवसर पर हमें प्राप्त होने जा रहे हैं, ये क्षण हैं पूज्य गुरुदेव के साहचर्य को प्राप्त कर, उनके दर्शन कर अपने-आप को धन्य-धन्य करने के |
यह जन्मदिवस इस पृथ्वी पर नहीं, अपितु सिद्धाश्रम में भी संन्यासी शिष्यों द्वारा बड़ी धूमधाम से, पूरे जोश और उल्लास के साथ, नृत्यमय होकर मनाया जाता है, क्योंकि वे पूज्य गुरुदेव की उपस्थिति को अपने जीवन का परम सौभाग्य मानते हैं, जिनकी वजह से ही वे जीवन को सही ढंग से समझ सके, उन गूढ़ तत्वों का रहस्य ज्ञात कर सकें, जिनका ज्ञान गुरुदेव के सिवाय और किसी को नहीं, क्योंकि वेद, उपनिषद सभी तो उन्हीं से पूर्णता प्राप्त करते हैं |
उनके इस धारा पर अवतरण का यह स्वर्णिम दिवस, जो प्रत्येक वर्ष उत्सव के रूप में मनाया जाता है, उत्सव ही नहीं, अपितु महोत्सव है, वसन्तोत्सव है, जिसमें प्रवाहित सुगन्ध के प्रत्येक झोंके को अपनी श्वासों में रचा-पचा लेना है, जिससे की हमारे रोम-रोम में वह सुगन्ध पूर्णता के साथ समाहित हो पूरे शरीर को अनंदितर दे, बेसुध कर दे, तभी तो हम उस विरत स्वरुप के दर्शन कर सकने के योग्य बन सकेंगे |
और इस बार पूज्य गुरुदेव का जन्मदिवस “नीलान्चल निखिल जन्मोहत्सव” के रूप में मनाया जा रहा है, यह जयन्ती कस्तूरी एवं पुलक से भरा महोत्सव है, क्योंकि ये दिवस विशेष १९, २०, २१ अप्रैल २०१२ पूज्य गुरुदेव के आत्मसात महोत्सव के रूप में सम्पन्न हो रहा है |
अतः जब तक हम इस आनन्द का, इस महोत्सव का लाभ नहीं उठा पायेंगे, तब तक उनके ‘शिवमय स्वरुप’ के, ‘ब्रह्मय स्वरुप’ के दर्शन कर पाना भी असम्भव है | उनकी विराटता के दर्शन का सौभाग्य उन्हें अवश्य प्राप्त होगा, जो इन क्षणों को जीवन्तता के साथ जी सकेंगे |
पूज्य गुरुदेव की कृपा का कहीं कोई अंत ही नहीं है, वे तो हर बार, हर क्षण अपनी कृपा से हम सभी शिष्यों को फलीभूत करते ही रहते हैं, और इस बार तो गुरुदेव की असीम कृपा ही है, कि हम गृहस्थ शिष्यों के साथ-साथ उच्च कोटि के सन्यासी शिष्य भी वहाँ दृश्य और अदृश्य दोनों रूपों में उपस्थित होंगे | कितना अद्भुत दृश्य होगा, जब अपने पूर्ण स्वरुप के साथ सदगुरुदेव आसान पर विराजमान होंगे, और हम सभी को अपनी अमृत वाणी में कृतार्थ करेंगे |
यदि गृहस्थ जीवन में गुरुदेव कि उपस्थिति से हम लीक से हटकर कुछ अलग चलने कि, कुछ करने कि प्रेरणा न ले सके, तो धिक्कार है इन प्राणों को | कब तक उलझे रहेंगे हम अपने जीवन कि इन समस्याओं में, क्या हमारा जीवन सिर्फ भोजन-पानी में ही सिमट कर रह जायेगा ? यदि अब भी हम नहीं चेते तो संसार में और कोई व्यक्तित्व फिर अवतरित नहीं होगा, जो हमें झकझोर सके, हमारा मार्गदर्शन कर सके, हमें नव जीवन प्रदान कर सके, क्योंकि अवतरण कि क्रिया बार-बार नहीं होती | यह तो हमरे कई-कई जन्मों के पुण्योदय का फल है, कि पूज्य गुरुदेव बार-बार शिविरों के माध्यम से कई सुन्दर क्षण हमें प्रदान कर अपना सान्निध्य देने कि पूर्ण चेष्टा करते हैं, और फिर यह तो “जन्मोहत्सव” है |
शिष्य का यह पहला कर्तव्य होता है, कि वह गुरुदेव कि एक आवाज पर अपना सर्वस्व उनके चरणों में अर्पित कर दे, लेकिन न जाने हम शिष्यों ने अपने पिछले जन्मों ऐसा क्या किया था, कि गुरुदेव हमारे बंधन में ही बंध गए हैं, सर्वस्व अर्पण करना तो दूर, वह तो सिर्फ हमारी उपस्थिति मात्र से ही अहलादित हो जाते हैं, क्योंकि वास्तव में यदि देखा जाए, तो शिष्य ही गुरु के प्राण, धड़कन है |
शिष्यों के विकारों, उनके दोषों कि समाप्ति, जिस क्षण हो जाए और एक नए जीवन का उदय हो जाए तो वह क्षण, यह दिवस ही अपने-आप में वास्तविक रूप में “जन्मदिवस” कहलाता है, अतः इसे “ गुरु जन्मोहत्सव” न कहकर “ शिष्य भाग्योदय दिवस” कहा जाना ज्यादा श्रेयस्कर रहेगा |
कैसी विडम्बना है, कि हम शिष्यों को अपना उत्सव मनाने के लिए भी गुरुदेव के आवाहन कि आवश्यकता पड़ती है, अब तो समाप्त हो जाना चाहिए यह क्रम | अब तो आवश्यकता है, कि शिष्य हर क्षेत्र में खड़ा होकर पूज्य गुरुदेव का आवाहन करें, और उन्हें आमंत्रित करे | फिर भी गुरुदेव का वरहस्त हम सब शिष्यों के ऊपर है, जिसके कारन बार-बार वे हमें ऐसे सुन्दर-सुन्दर अवसर दे रहे हैं, जो कि हमारे जीवन कि अमूल्य धरोहर हैं |
हमें निश्चित रूप से ही इस पूंजी को सहेजना है, और भूल कर भी इस अवसर को नहीं गंवाना है, जो १९, २०, २१ अप्रैल को यात्रिका निवास, लाइट हाउस के पास, पुरी (ओडिशा) की पावन भूमि पर “नीलान्चल निखिल जन्मोहत्सव” के रूप में सम्पन्न होने जा रहा है | जहाँ सब कुछ भूल कर, नृत्यमय होते हुए, देह भाव से ऊपर उठ कर, प्राण तत्व में आना है, न कोई मोह हो, न कोई बंधन हो, न कोई व्यर्थ चिंतन हो, मात्र शिष्य रूप में पूर्ण मर्यादा के साथ इस दिवस को साकार कर लेना है |
वास्तव में हम धन्यभागी हैं, कि गुरुदेव हमारे बीच खड़े हमें पुकार रहे हैं, अपने बांहों में समेत लेने के लिए, हमारे कुविचारों और संचित किये गए पाप कर्मों को मृत्यु प्रदान कर, हमारे जीवन का नव-निर्माण करने के लिए | अब तो हमें गुरुदेव के आवाहन को, उनकी मर्यादाओं को रखना चाहिए, क्योंकि उनकी पुकार अपनों के लिए है, और वे अपने और कोई नहीं, हम शिष्य ही हैं |
हम शिष्यों के भाग्य पर देवी-देवताओं को भी रश्क होता है, कितना आत्मीय बना लिया है गुरुदेव ने हमें, इसी आत्मीयता को साकार करने के लिए एक बार पुनः उसी पुकार, उसी निमंत्रण को जीवंत करने के लिए हमारा प्रत्येक रोम एक ह्रदय बन जाये, और हर ह्रदय कि यही आकांक्षा हो |
१९, २०, २१ अप्रैल, २०१२
यात्रिका निवास, लाइट हाउस के पास, पुरी (ओडिशा)
जहाँ से गुजरना है मेरे गुरुवर को, वहाँ मेरे सीने के धड़कन बिछा दो !!
... यह पर्व गुरु जन्मोहत्सव का है, उत्सव के क्षणों का है, मिलन के क्षणों का है... मिलन है जीवात्मा का परमात्मा से, मिलन है नदी का समुद्र से, मिलन है धरती का आकाश से... एक ऐसी ही स्वर्णिम बेला, जो एक नव चेतना का आगमन है, एक पुनर्जन्म है, जो जन्म होकर एक अवतरण है, उस देव पुरुष का, जिसने अपने प्रकाश से अज्ञान रुपी अंधकार को दूर किया है, प्रकाश का सृजन किया है |
और यह मिलन कोई सामान्य मिलन नहीं है, यह तो कई – कई जन्मों का मिलन है, कई – कई जन्मों से वे आवाज दे रहे हैं तुम्हे, और हर जिन्दगी में तुम्हे पकड़ने की चेष्टा की है, क्योंकि उनका तो केवल मात्र यही उद्देश्य है, की यह सुगन्ध बसंत में पुरी तरह से मिल जाए, यह बूंद समुन्द्र में पुरी तरह से विलीन हो जाए... और यह बार-बार जन्म लेने की प्रक्रिया एक बारगी ही समाप्त हो जाए |
तुम बिन जीवन का मक्सद क्या............. तुम बिन हर लम्हा क्या....................
है प्रभु ! आपके बिना तो यह जीवन ही निरर्थक है, और इसलिए यह “नीलान्चल निखिल जन्मोहत्सव” हम सब शिष्यों को आवाज दे रही है, बुला रही है, प्राणों की झंकार का मधुर निमंत्रण भेज कर मस्ती में डूबने के लिए, आनन्द से सरोबार होने के लिए, अब यह तो हमारी न्यूनता है, की हम उस झंकार को सुनकर भी अनसुना कर दें |
यह तो इस पृथ्वी लोक के प्रत्येक प्राणी का असीम सौभाग्य है, जो कि परमपूज्य गुरुदेव ने सामान्य मानव के रूप में जन्म लेकर, इस माटी को अपने चरणों कि धूलि से धन्य-धन्य कर दिया, जिसके दर्शन मात्र के लिए उच्चकोटि के ऋषि, मुनि, योगी, संन्यासी भी तरसते रह जाते हैं | ऐसी दिव्य विभूति, जिनके आगे देवता भी नतमस्तक रहते हैं, जिन्हें देखने के लिए अप्सराएं भी लालायित रहती हैं |
उनकी सामीप्यता प्राप्त करना तो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, और यह पूज्य गुरुदेव का इस धारा पर जन्म नहीं, अपितु अवतरण ही हुआ है, जबकि उनके समस्त शिष्यों को उनकी उच्चता का, उनकी श्रेष्ठता का पुर्नाभास है, तो फिर उनके व्यक्तिव का बखान करना तो ऐसा ही है, जैसे – “सूरज को दीपक दिखाना |”
“नीलान्चल निखिल जन्मोहत्सव” ऐसा ही पावन पर्व है, जिसमें भाग ले समस्त साधक व शिष्य गुरुदेव कि आशीर्वाद वर्षा में आप्लावित हो सकते हैं, क्योंकि ऐसी वर्षा जो मन में, आत्मा में, हृदय के वीरान रेगिस्तान में ज्ञान रुपी बीज का अनुकरण कर दें, फिर यह तो एक अद्भुत घटना ही कही जा सकती है इस धारा पर |
जहाँ पूज्य गुरुदेव उपस्थित होते हैं, जहाँ वे अपने ज्ञान का उपदेश देते हुए एक पवित्रमय वातावरण का निर्माण करते हैं, जगन्नाथ पुरी स्थली देव लोक से कम नहीं है, तो क्यों न हम उस दिव्य क्षणोंउन का आनन्द लें और अपने जीवन की व्याधियों, बाधाओं को भुलाकर अपने-आप को मदमस्त कर दें, क्योंकि ये क्षण जो जगन्नाथ पुरी में गुरुदेव के अवतरण दिवस के अवसर पर हमें प्राप्त होने जा रहे हैं, ये क्षण हैं पूज्य गुरुदेव के साहचर्य को प्राप्त कर, उनके दर्शन कर अपने-आप को धन्य-धन्य करने के |
यह जन्मदिवस इस पृथ्वी पर नहीं, अपितु सिद्धाश्रम में भी संन्यासी शिष्यों द्वारा बड़ी धूमधाम से, पूरे जोश और उल्लास के साथ, नृत्यमय होकर मनाया जाता है, क्योंकि वे पूज्य गुरुदेव की उपस्थिति को अपने जीवन का परम सौभाग्य मानते हैं, जिनकी वजह से ही वे जीवन को सही ढंग से समझ सके, उन गूढ़ तत्वों का रहस्य ज्ञात कर सकें, जिनका ज्ञान गुरुदेव के सिवाय और किसी को नहीं, क्योंकि वेद, उपनिषद सभी तो उन्हीं से पूर्णता प्राप्त करते हैं |
उनके इस धारा पर अवतरण का यह स्वर्णिम दिवस, जो प्रत्येक वर्ष उत्सव के रूप में मनाया जाता है, उत्सव ही नहीं, अपितु महोत्सव है, वसन्तोत्सव है, जिसमें प्रवाहित सुगन्ध के प्रत्येक झोंके को अपनी श्वासों में रचा-पचा लेना है, जिससे की हमारे रोम-रोम में वह सुगन्ध पूर्णता के साथ समाहित हो पूरे शरीर को अनंदितर दे, बेसुध कर दे, तभी तो हम उस विरत स्वरुप के दर्शन कर सकने के योग्य बन सकेंगे |
और इस बार पूज्य गुरुदेव का जन्मदिवस “नीलान्चल निखिल जन्मोहत्सव” के रूप में मनाया जा रहा है, यह जयन्ती कस्तूरी एवं पुलक से भरा महोत्सव है, क्योंकि ये दिवस विशेष १९, २०, २१ अप्रैल २०१२ पूज्य गुरुदेव के आत्मसात महोत्सव के रूप में सम्पन्न हो रहा है |
अतः जब तक हम इस आनन्द का, इस महोत्सव का लाभ नहीं उठा पायेंगे, तब तक उनके ‘शिवमय स्वरुप’ के, ‘ब्रह्मय स्वरुप’ के दर्शन कर पाना भी असम्भव है | उनकी विराटता के दर्शन का सौभाग्य उन्हें अवश्य प्राप्त होगा, जो इन क्षणों को जीवन्तता के साथ जी सकेंगे |
पूज्य गुरुदेव की कृपा का कहीं कोई अंत ही नहीं है, वे तो हर बार, हर क्षण अपनी कृपा से हम सभी शिष्यों को फलीभूत करते ही रहते हैं, और इस बार तो गुरुदेव की असीम कृपा ही है, कि हम गृहस्थ शिष्यों के साथ-साथ उच्च कोटि के सन्यासी शिष्य भी वहाँ दृश्य और अदृश्य दोनों रूपों में उपस्थित होंगे | कितना अद्भुत दृश्य होगा, जब अपने पूर्ण स्वरुप के साथ सदगुरुदेव आसान पर विराजमान होंगे, और हम सभी को अपनी अमृत वाणी में कृतार्थ करेंगे |
यदि गृहस्थ जीवन में गुरुदेव कि उपस्थिति से हम लीक से हटकर कुछ अलग चलने कि, कुछ करने कि प्रेरणा न ले सके, तो धिक्कार है इन प्राणों को | कब तक उलझे रहेंगे हम अपने जीवन कि इन समस्याओं में, क्या हमारा जीवन सिर्फ भोजन-पानी में ही सिमट कर रह जायेगा ? यदि अब भी हम नहीं चेते तो संसार में और कोई व्यक्तित्व फिर अवतरित नहीं होगा, जो हमें झकझोर सके, हमारा मार्गदर्शन कर सके, हमें नव जीवन प्रदान कर सके, क्योंकि अवतरण कि क्रिया बार-बार नहीं होती | यह तो हमरे कई-कई जन्मों के पुण्योदय का फल है, कि पूज्य गुरुदेव बार-बार शिविरों के माध्यम से कई सुन्दर क्षण हमें प्रदान कर अपना सान्निध्य देने कि पूर्ण चेष्टा करते हैं, और फिर यह तो “जन्मोहत्सव” है |
शिष्य का यह पहला कर्तव्य होता है, कि वह गुरुदेव कि एक आवाज पर अपना सर्वस्व उनके चरणों में अर्पित कर दे, लेकिन न जाने हम शिष्यों ने अपने पिछले जन्मों ऐसा क्या किया था, कि गुरुदेव हमारे बंधन में ही बंध गए हैं, सर्वस्व अर्पण करना तो दूर, वह तो सिर्फ हमारी उपस्थिति मात्र से ही अहलादित हो जाते हैं, क्योंकि वास्तव में यदि देखा जाए, तो शिष्य ही गुरु के प्राण, धड़कन है |
शिष्यों के विकारों, उनके दोषों कि समाप्ति, जिस क्षण हो जाए और एक नए जीवन का उदय हो जाए तो वह क्षण, यह दिवस ही अपने-आप में वास्तविक रूप में “जन्मदिवस” कहलाता है, अतः इसे “ गुरु जन्मोहत्सव” न कहकर “ शिष्य भाग्योदय दिवस” कहा जाना ज्यादा श्रेयस्कर रहेगा |
कैसी विडम्बना है, कि हम शिष्यों को अपना उत्सव मनाने के लिए भी गुरुदेव के आवाहन कि आवश्यकता पड़ती है, अब तो समाप्त हो जाना चाहिए यह क्रम | अब तो आवश्यकता है, कि शिष्य हर क्षेत्र में खड़ा होकर पूज्य गुरुदेव का आवाहन करें, और उन्हें आमंत्रित करे | फिर भी गुरुदेव का वरहस्त हम सब शिष्यों के ऊपर है, जिसके कारन बार-बार वे हमें ऐसे सुन्दर-सुन्दर अवसर दे रहे हैं, जो कि हमारे जीवन कि अमूल्य धरोहर हैं |
हमें निश्चित रूप से ही इस पूंजी को सहेजना है, और भूल कर भी इस अवसर को नहीं गंवाना है, जो १९, २०, २१ अप्रैल को यात्रिका निवास, लाइट हाउस के पास, पुरी (ओडिशा) की पावन भूमि पर “नीलान्चल निखिल जन्मोहत्सव” के रूप में सम्पन्न होने जा रहा है | जहाँ सब कुछ भूल कर, नृत्यमय होते हुए, देह भाव से ऊपर उठ कर, प्राण तत्व में आना है, न कोई मोह हो, न कोई बंधन हो, न कोई व्यर्थ चिंतन हो, मात्र शिष्य रूप में पूर्ण मर्यादा के साथ इस दिवस को साकार कर लेना है |
वास्तव में हम धन्यभागी हैं, कि गुरुदेव हमारे बीच खड़े हमें पुकार रहे हैं, अपने बांहों में समेत लेने के लिए, हमारे कुविचारों और संचित किये गए पाप कर्मों को मृत्यु प्रदान कर, हमारे जीवन का नव-निर्माण करने के लिए | अब तो हमें गुरुदेव के आवाहन को, उनकी मर्यादाओं को रखना चाहिए, क्योंकि उनकी पुकार अपनों के लिए है, और वे अपने और कोई नहीं, हम शिष्य ही हैं |
हम शिष्यों के भाग्य पर देवी-देवताओं को भी रश्क होता है, कितना आत्मीय बना लिया है गुरुदेव ने हमें, इसी आत्मीयता को साकार करने के लिए एक बार पुनः उसी पुकार, उसी निमंत्रण को जीवंत करने के लिए हमारा प्रत्येक रोम एक ह्रदय बन जाये, और हर ह्रदय कि यही आकांक्षा हो |
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