अपने गुरु के स्वरूप को , अपने इष्ट के स्वरूप को देखने के लिए तुम्हे अपने मन पर चढ़ी मैल की परते हटानी पड़ेगी | जब तक तुम्हारा मन साफ नही होगा तब तक तुम गुरु को सही रूप में देख ही नही पाओगे | जैसे मुहं देखने का शीशा होता है ,उस पर रोज थोड़ी -थोड़ी धूल की परत रोज चढ़ती रहती है , जिसे रोज साफ़ करना पड़ता है | अगर कई दिनों तक शीशे पर चढ़ी धूल साफ़ नही की जाए तो आप को अपना चेहरा उसमे साफ़ नही दिखेगा | अगर आप चाहते हो आपको शीशे में आपका चेहरा साफ़ दिखे तो आपको शीशा रोज साफ़ करना पडेगा | उसी तरह तुम्हारे मन पर भी रोज मैल की परत चढ़ती रहती है क्योकि तुम्हे रोज कभी किसी बात पर झूठ बोलना पड़ता है , कभी तुम छल करते हो ,जिससे तुम्हारा मन दूषित हो जाता है | इस मन को साफ़ करने की क्रिया है ज्यादा से ज्यादा गुरु मंत्र का अजपा जप किया जाए , गुरु सेवा , गुरु संपर्क में रहा जाए ताकि मन पर जमी धूल समाप्त हो सके |
जाने अनजाने में असत्य भाषण , छल , पाप हो सकते है जिसका फल भोगना ही पड़ता है | जब भी आप गुरु चरण स्पर्श करें या गुरु साक्षात नही हो तो जब भी गुरु पूजन करें तो मन से आप अपने दिन भर किये छल , झूठ , कपट को उनके चरणों में समर्पित कर दें ,क्योंकि बोलने में आपको संकोच होगा की मैं कैसे कहूं | इससे आपका मन साफ़ हो पायेगा | हो सकता है बार -बार ऐसे गलती होती रही क्योंकि ये तो आपके मन के विकार है , मैं तो उन्हें साफ़ करने की प्रक्रिया में हूँ |
आप के मन में कोई तकलीफ है , उसे भी किसी और से कहने की बजाय ,चिंता करने की बजाय आप मन से अपने गुरु को समर्पित कर दें | इससे आप का मन हल्का होगा और धीरे-धीरे गुरु से जुड़ाव बढता जाएगा | ये एक तरफ़ा बात नही है गुरु भी आपको उतना याद करें जितना आप उन्हें याद करते है और एक दिन यह जुड़ाव इतना बढेगा की गुरु भी आप के बिन नही रह पायेगा, पर जरूरी है की आप की आँखों में प्रेम के अश्रु हो , ह्रदय में गुरु के लिए एक तड़फ हो , आप उनको देखे बिना रह न सकें , आपके आँखों से अश्रुधार बहने लगे | जब ऐसा होगा तब आप के शरीर से अष्टगंध प्रवाहित होने लग जायेगी | तब आप गुरु के स्वरूप को सही रूप में देख सकोगे |
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